Sunday, May 16, 2010

"अंदाज़ बदलना है"

आज का दिन भी यूंही गुज़र जाने वाला था। मैं सोच रहा था कि अपने इस सफर में आज ऐसा क्या करुं जिससे कि हम अपने लक्ष्य में एक और कड़ी जोड़ सकें। ट्रेन की धीमी रफ़्तार और सूरज की गर्मी दोनों ही मेरी बेचैनी बढ़ा रही थीं। थोड़े समय के लिए मैं सुस्त भी हो गया...फिर सोचा कि क्या ये लड़ाई ऐसे ही चलेगी? ट्रेन जिसमें हम सफ़र करते हैं, जो लोगों को उनके गन्तव्य स्थानों तक पहुंचाने का सिर्फ माध्यम ही नहीं है...उससे ऊपर की सोच को समझने में शायद वक्त लगा पर देर से ही सही मुझे लगा कि नहीं इस सफ़र के दौरान करने के लिए बहुत कुछ है। शायद जिसे मैं गवां रहा हूं। ये सोच कर मैंने एक संकल्प लिया, वैसे तो लोग ट्रेन में बहुत सारी बातें करते हैं...शायद वो खुद समझने की कोशिश नहीं करते कि जिस तंत्र के बारे में हम सब बात करते हैं, हम भी उसी का एक हिस्सा हैं।अपने सीट पर बैठे यात्रियों की बात सुनकर मैंने उनसे बातचीत करना शुरु की तो लगा लोग कितने नाराज़ हैं। कुछ इस तंत्र से, कुछ घर से और कुछ गंदगी से...जबकि ट्रेनों में गंदगी फैलाने वाले हम ही हैं। एक परिवार में जितने लोग उतनी पानी की बोतलें मतलब उतना कचरा...इस 1000 किलोमीटर के सफर में शायद एक परिवार जिसमें कुल 6 लोग थे...ने कम से कम 12-15 प्लास्टिक की बोतलों का उपयोग किया। हम प्यास को तो कम नहीं कर सकते हैं...पर क्या हम ऐसा नहीं कर सकते कि जब हम साथ में जाएं...परिवार के सभी सदस्यों को अलग- अलग बोतलें उपयोग करने के लिए देने की जगह हम एक बड़ा जल शीतक साथ रखें। पानी की मात्रा भी ज्यादा आएगी और पानी ठंडा भी रहेगा साथ ही प्लास्टिक की बोतलों से फैलने वाले कचरे से भी बचा जा सकेगा। मैं बस आपसे ये कहना चाहता हूं कि हमें केवल अपने सोचने का अंदाज बदलना है। हमारी हर छोटी-छोटी कोशिशों से ही तो वातावरण शुद्ध होगा। ट्रेनों में खाने-पीने की सामग्री खाने के बाद हम उसके रैपर ट्रेन में ही छोड़ देते हैं। सोचिए जब आप अपने सफ़र पे निकलने के लिए ट्रेन में जाते हैं...अपनी सीट नं। पर पहुंचने के बाद जब आपको वहां पर कचरा दिखता है तो सबसे पहले मुंह से शब्द निकलते हैं,"क्या यहां कोई जानवर बैठा था"...फिर वहीं सीट हम साफ करते हैं और पहले बैठने वाले यात्री को कोसते हैं या सफाई कर्मचारी को दोष देते हैं। मेरा एक सवाल है, क्या हम अपने वाहनों में भी बैठ कर ऐसा ही करते हैं? क्या हम अपनी कार में बैठ कर सारा कूड़ा कार के अंदर ही फेंकते रहते हैं? रेलवे ने भी हम सबकी जरुरतों का ध्यान रखकर ट्रेनों में कूड़ेदान लगवाए हैं...पर कितने लोग उसका उपयोग करते हैं, कूड़ेदान केवल पीकदान नहीं है...सीटों और फर्श को गंदा करने से बेहतर है हम उसका उपयोग करें या घर से कागज का लिफाफा लेकर निकलें, उसमें अपना फैलाया सारा कूड़ा इकट्ठा करके कूड़ेदान में डालें। ट्रेन कई स्टेशनों पर भी रुकती है वहां पर भी कूड़ेदान उपलब्ध है। ट्रेन हमारी राष्ट्रीय संपत्ति है उसको स्वच्छ रखना हमारा भी कर्तव्य है। आज हम कहते हैं कि अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर कितने साफ देशों में से हैं। दोस्तों उन्हें साफ बनाने वाले भी वहां के नागरिक ही हैं। सवाल है,"क्या हम दूसरों की तारीफ़ ही करेंगे या दूसरों को भी हमारी तारीफ़ करने का मौका देंगे?"

1 comment:

  1. आपने वाकई detail में इसे बताया आपका धन्यवाद् लगभग कुछ घंटो के बाद मिला यहाँ सही जानकारी,अभी तक बहुत ही आसानी से बहुत ये सवालो का जवाब मुझे मिला है यहाँ , हिंदी में पढने वालो के लिए वाकई बेहतरीन ब्लॉग ! धन्यवाद सर जी
    Appsguruji (आप सभी के लिए बेहतरीन आर्टिकल संग्रह) Navin Bhardwaj

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