Wednesday, May 12, 2010

उत्तरदायित्व

कल हमने आप सभी का शुक्रिया अदा किया था...जो हमारे साथ जुड़े और उन्हें भी किया जो नहीं जुड़े या जुड़ना चाहते हैं...पर आपका हमारे साथ सिर्फ जुड़ जाना ही काफी नहीं है। शब्दों के जरिए आपसे कही गई हमारी बातों पर हम आपकी प्रतिक्रिया भी जानना चाहते हैं...हमें अच्छा लगेगा और हमें हमारी गलतियां भी पता लगेंगी। गलती से याद आया, पहले कभी एक कहानी सुनी थी जिसके उद्देश्य को ध्यान में रखकर किया गया काम हमारे लिए हमेशा आसान होता है। छोटी सी कहानी है, हो सकता है आप सभी ने सुनी भी हो...फिर भी आपसे उस कहानी को कहना चाहेंगे। कहानी किसी बड़े बिजनेस मेन या किसी बहुत बड़े आदमी की नहीं है। ये कहानी उस आम आदमी की है, जो हमें जिंदगी में आगे बढ़ने के सही मायने सीखा जाता है। कहानी एक इंसान की है, जो आम होकर भी आम नहीं है। “किसी एक सुन्दर से शहर में अपने रंगों की कला से कोरे पन्नों में रंग भरने वाले एक कलाकार रहता था। जो खुशी से झूमता और हमेशा हंसता रहता था। अपने ब्रश पर तरह-तरह के रंगों को लगा पन्नों को रंगता और खुश रहता...पर एक दिन उसे लगा कि कोरे पन्नों पर तो कई रंग हैं लेकिन उसके आस-पास रह रहे लोगों की जिंदगी से तो रंग शायद उड़ ही गए हैं...वजह वो पूरा समय खुद की कमी को सुधारने करने के बजाय दूसरों में कमी निकालते रहते हैं। खैर पेंटर को इस बात का एहसास हुआ और उसने बाकी लोगों को भी इस बात का एहसास दिलाने की ठानी। और पहुंच गया अपनी बनायीं एक तस्वीर को बाज़ार में लेकर। उसने वो तस्वीर बाज़ार में रख दी और उस पर लिख दिया-‘इसमें आपको जो भी गलतियाँ दिखे उस पर कृपया सही का निशान लगा दीजिए’। इतना लिख पेंटर वहां से चला गया, जब वो दूसरे दिन वापस आया तो तस्वीर में ऐसी कोई जगह नहीं थी जहां निशान न लगा हो ...! यह देख कर उसे लगा की क्या में इतना बुरा कलाकार हूँ । अगले दिन वही तस्वीर वो दोबारा बनाकर उसी बाज़ार में गया और उस पर लिख दिया-‘इसमें जो गलतियां हैं उसे सुधार दीजिए’। जब वो उस तस्वीर को लेने आया तो उसे बहुत आश्चर्य हुआ...वहीं पेंटिंग जिसमें लोगों को कल तक कई गलतियां नजर आ रही थीं उसमें उन्हें आज सुधार के लिए कुछ दिखाई नहीं दिया। पेंटर ने ऐसा करने का अपना मकसद लोगों के सामने रखा तब कहीं जाकर उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ ”। इस कहानी को कहने का हमारा मकसद भी बस इतना ही है कि गलतियां ढूंढना तो बहुत आसान होता है, पर जब उन्हें सही करने का वक्त आता है तो कोई भी उसे सही करने आगे नहीं आता...इसलिए सिर्फ कमियां न ढूंढें अगर कमियाँ है ,तो उन्हें सुधरने का उत्तरदायित्व भी तो हमारा है.दुसरे...दूसरे पर्यावरण प्रदूषित कर रहे हैं...ये तो हम देख रहे हैं लेकिन इस बात पर गौर नहीं करते कि अपने बाग से फूल हम भी तो उजाड़ रहे हैं। घर बड़ा चाहिए आखिर कमा किसलिए रहे हैं, तो सवाल है सोना तो बस एक पलंग पर ही है। तो दूसरे के घर के बाहर पड़ा कूड़ा देखना बंद करिए और अपने घर का कूड़ा देखिए...और अपना आशियां साफ रखिए कुदरत अपने आप सवंर जाएगी...

BECAUSE EVERY PROBLEM HAS A GREAT SOLUTION.

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