Saturday, August 28, 2010

"जागरुक बनें, भविष्य सुरक्षित बनाएं"

एक टीवी शो देखा, देश भर से कई प्रतिभावान कलाकारों ने उसमें हिस्सा लिया था. सभी कलाकार बहुत अच्छे थे, सबमें अपनी तरह ही बेहतरीन प्रतिभा थी. लेकिन देखते ही देखते कुछ कलाकारों के एक ग्रुप ने मन पर अलग ही छाप छोड़ दी. उन्हें देखकर लगा कि ये हैं आज के युवा जो ना सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं बल्कि अपने आस-पास के वातावरण के प्रति भी जागरुक हैं. सभी ने मिलकर एक ग्रुप डांस पेश किया था, थीम थी 'सेव वॉटर'...देखकर काफी अच्छा लगा.
तभी चैनल चेन्ज करते ही सच्चाई से सामना हो गया. धरती खत्म होने के कगार पर थी. सब कुछ खत्म हो रहा था. पहाड़, नदियां, झरने, जंगल सब कुछ खत्म हो रहा था. वजह 'ग्लोबल वॉर्मिंग'...हम धीरे-धीरे विनाश की ओर बढ़ रहे हैं. हम में से कोई भी ऐसा नहीं है जो इस बात से अनजान हो, लेकिन हम इसे रोकने के लिए कुछ करना तो दूर जो लोग इसे रोकने का प्रयास कर रहे हैं उनका साथ भी नहीं दे रहे. जीबीओ3 ( थर्ड ग्लोबल बायोजेनेटिक आउटलुक) के सर्वेक्षण से तो ये बात पूरी तरह साफ हो जाती है, कि अब वो दिन दूर नहीं जब इस इंतजार में होंगे कि काल कब कहां, किसके दरवाजे पर दस्तक दे दे.
2002 में बैठक में ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकने के लिए बुलाई गई बैठक को काम सौंपा गया था, उसके लिए 2010 की समय सीमा तय की गई थी. 2010 अपने आखिरी पड़ाव पर है और इस तरफ कोई भी काम नहीं हो पाया है. यहां तक कि ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकने के लिए तय किए गए 21 लक्ष्यों में से एक भी लक्ष्य को पूरा नहीं किया जा सका है. ग्लेशियरस् का पिघलना, मूंगे की चट्टानों का विलुप्त होना, जंगलों का राख होना...आने वाली तबाही का मंजर बयां करते हैं.
अब तक सामान्य दैनिक जन-जीवन से दूर इन त्रासदियों का असर दैनिक जीवन पर भी पड़ने लगा है. नाराज कुदरत ने अपना विकराल रुप दिखाना शुरु कर दिया है. कहीं भूख-प्यास, किसी अचानक आयी प्राकृतिक आपदा या फिर नयी पैदा हुई बीमारी से लोग मर रहे हैं. जीवन का अस्तित्व खत्म हो रहा है, लेकिन इन सब के पीछे कोई और नहीं बल्कि हम खुद ज़िम्मेदार हैं. धरती के अनमोल रत्न कुदरत का हमने जब-तब अपने स्वार्थ के लिए जैसे चाहा वैसे उपयोग किया, लेकिन उसे संजोना भूल गए. हम भूल गए कि हम अगर कुदरत से कुछ ले रहे हैं तो उसके अमूल्य रत्नों को खत्म होने से बचाना भी है, क्योंकि अगर हम धीरे-धीरे प्रकृति के खजाने में थोड़ा-थोड़ा डालने के बजाय अगर कुछ-कुछ निकालते रहे तो एक दिन ये खजाना खाली हो जाएगा.
आज ये खजाना खाली हो गया है. प्रकृति अपने ऊपर होते आ रहे जुल्मों को सहते-सहते थक गयी है. लेकिन अभी भी देर नहीं हुई है. अगर हम चाहें तो एक साथ मिलकर अपने प्रयासों से धरती को काल का ग्रास बनने से बचा सकते हैं. बस जरुरत है जागरुक होने की और दूसरों को जागरुक करने की. हम अपने इस कॉलम के जरिए आप सब तक यहीं संदेश पहुंचाना चाहते हैं. पर्यावरण कानून का पालन करें और वातावरण स्वस्थ बनाएं ताकि हम सभी को एक सुरक्षित भविष्य मिल सके.
"जागरुक बनें, भविष्य सुरक्षित बनाएं"