आज का दिन भी यूंही गुज़र जाने वाला था। मैं सोच रहा था कि अपने इस सफर में आज ऐसा क्या करुं जिससे कि हम अपने लक्ष्य में एक और कड़ी जोड़ सकें। ट्रेन की धीमी रफ़्तार और सूरज की गर्मी दोनों ही मेरी बेचैनी बढ़ा रही थीं। थोड़े समय के लिए मैं सुस्त भी हो गया...फिर सोचा कि क्या ये लड़ाई ऐसे ही चलेगी? ट्रेन जिसमें हम सफ़र करते हैं, जो लोगों को उनके गन्तव्य स्थानों तक पहुंचाने का सिर्फ माध्यम ही नहीं है...उससे ऊपर की सोच को समझने में शायद वक्त लगा पर देर से ही सही मुझे लगा कि नहीं इस सफ़र के दौरान करने के लिए बहुत कुछ है। शायद जिसे मैं गवां रहा हूं। ये सोच कर मैंने एक संकल्प लिया, वैसे तो लोग ट्रेन में बहुत सारी बातें करते हैं...शायद वो खुद समझने की कोशिश नहीं करते कि जिस तंत्र के बारे में हम सब बात करते हैं, हम भी उसी का एक हिस्सा हैं।अपने सीट पर बैठे यात्रियों की बात सुनकर मैंने उनसे बातचीत करना शुरु की तो लगा लोग कितने नाराज़ हैं। कुछ इस तंत्र से, कुछ घर से और कुछ गंदगी से...जबकि ट्रेनों में गंदगी फैलाने वाले हम ही हैं। एक परिवार में जितने लोग उतनी पानी की बोतलें मतलब उतना कचरा...इस 1000 किलोमीटर के सफर में शायद एक परिवार जिसमें कुल 6 लोग थे...ने कम से कम 12-15 प्लास्टिक की बोतलों का उपयोग किया। हम प्यास को तो कम नहीं कर सकते हैं...पर क्या हम ऐसा नहीं कर सकते कि जब हम साथ में जाएं...परिवार के सभी सदस्यों को अलग- अलग बोतलें उपयोग करने के लिए देने की जगह हम एक बड़ा जल शीतक साथ रखें। पानी की मात्रा भी ज्यादा आएगी और पानी ठंडा भी रहेगा साथ ही प्लास्टिक की बोतलों से फैलने वाले कचरे से भी बचा जा सकेगा। मैं बस आपसे ये कहना चाहता हूं कि हमें केवल अपने सोचने का अंदाज बदलना है। हमारी हर छोटी-छोटी कोशिशों से ही तो वातावरण शुद्ध होगा। ट्रेनों में खाने-पीने की सामग्री खाने के बाद हम उसके रैपर ट्रेन में ही छोड़ देते हैं। सोचिए जब आप अपने सफ़र पे निकलने के लिए ट्रेन में जाते हैं...अपनी सीट नं। पर पहुंचने के बाद जब आपको वहां पर कचरा दिखता है तो सबसे पहले मुंह से शब्द निकलते हैं,"क्या यहां कोई जानवर बैठा था"...फिर वहीं सीट हम साफ करते हैं और पहले बैठने वाले यात्री को कोसते हैं या सफाई कर्मचारी को दोष देते हैं। मेरा एक सवाल है, क्या हम अपने वाहनों में भी बैठ कर ऐसा ही करते हैं? क्या हम अपनी कार में बैठ कर सारा कूड़ा कार के अंदर ही फेंकते रहते हैं? रेलवे ने भी हम सबकी जरुरतों का ध्यान रखकर ट्रेनों में कूड़ेदान लगवाए हैं...पर कितने लोग उसका उपयोग करते हैं, कूड़ेदान केवल पीकदान नहीं है...सीटों और फर्श को गंदा करने से बेहतर है हम उसका उपयोग करें या घर से कागज का लिफाफा लेकर निकलें, उसमें अपना फैलाया सारा कूड़ा इकट्ठा करके कूड़ेदान में डालें। ट्रेन कई स्टेशनों पर भी रुकती है वहां पर भी कूड़ेदान उपलब्ध है। ट्रेन हमारी राष्ट्रीय संपत्ति है उसको स्वच्छ रखना हमारा भी कर्तव्य है। आज हम कहते हैं कि अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर कितने साफ देशों में से हैं। दोस्तों उन्हें साफ बनाने वाले भी वहां के नागरिक ही हैं। सवाल है,"क्या हम दूसरों की तारीफ़ ही करेंगे या दूसरों को भी हमारी तारीफ़ करने का मौका देंगे?"
कल हमने आप सभी का शुक्रिया अदा किया था...जो हमारे साथ जुड़े और उन्हें भी किया जो नहीं जुड़े या जुड़ना चाहते हैं...पर आपका हमारे साथ सिर्फ जुड़ जाना ही काफी नहीं है। शब्दों के जरिए आपसे कही गई हमारी बातों पर हम आपकी प्रतिक्रिया भी जानना चाहते हैं...हमें अच्छा लगेगा और हमें हमारी गलतियां भी पता लगेंगी। गलती से याद आया, पहले कभी एक कहानी सुनी थी जिसके उद्देश्य को ध्यान में रखकर किया गया काम हमारे लिए हमेशा आसान होता है। छोटी सी कहानी है, हो सकता है आप सभी ने सुनी भी हो...फिर भी आपसे उस कहानी को कहना चाहेंगे। कहानी किसी बड़े बिजनेस मेन या किसी बहुत बड़े आदमी की नहीं है। ये कहानी उस आम आदमी की है, जो हमें जिंदगी में आगे बढ़ने के सही मायने सीखा जाता है। कहानी एक इंसान की है, जो आम होकर भी आम नहीं है। “किसी एक सुन्दर से शहर में अपने रंगों की कला से कोरे पन्नों में रंग भरने वाले एक कलाकार रहता था। जो खुशी से झूमता और हमेशा हंसता रहता था। अपने ब्रश पर तरह-तरह के रंगों को लगा पन्नों को रंगता और खुश रहता...पर एक दिन उसे लगा कि कोरे पन्नों पर तो कई रंग हैं लेकिन उसके आस-पास रह रहे लोगों की जिंदगी से तो रंग शायद उड़ ही गए हैं...वजह वो पूरा समय खुद की कमी को सुधारने करने के बजाय दूसरों में कमी निकालते रहते हैं। खैर पेंटर को इस बात का एहसास हुआ और उसने बाकी लोगों को भी इस बात का एहसास दिलाने की ठानी। और पहुंच गया अपनी बनायीं एक तस्वीर को बाज़ार में लेकर। उसने वो तस्वीर बाज़ार में रख दी और उस पर लिख दिया-‘इसमें आपको जो भी गलतियाँ दिखे उस पर कृपया सही का निशान लगा दीजिए’। इतना लिख पेंटर वहां से चला गया, जब वो दूसरे दिन वापस आया तो तस्वीर में ऐसी कोई जगह नहीं थी जहां निशान न लगा हो ...! यह देख कर उसे लगा की क्या में इतना बुरा कलाकार हूँ । अगले दिन वही तस्वीर वो दोबारा बनाकर उसी बाज़ार में गया और उस पर लिख दिया-‘इसमें जो गलतियां हैं उसे सुधार दीजिए’। जब वो उस तस्वीर को लेने आया तो उसे बहुत आश्चर्य हुआ...वहीं पेंटिंग जिसमें लोगों को कल तक कई गलतियां नजर आ रही थीं उसमें उन्हें आज सुधार के लिए कुछ दिखाई नहीं दिया। पेंटर ने ऐसा करने का अपना मकसद लोगों के सामने रखा तब कहीं जाकर उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ ”। इस कहानी को कहने का हमारा मकसद भी बस इतना ही है कि गलतियां ढूंढना तो बहुत आसान होता है, पर जब उन्हें सही करने का वक्त आता है तो कोई भी उसे सही करने आगे नहीं आता...इसलिए सिर्फ कमियां न ढूंढें अगर कमियाँ है ,तो उन्हें सुधरने का उत्तरदायित्व भी तो हमारा है.दुसरे...दूसरे पर्यावरण प्रदूषित कर रहे हैं...ये तो हम देख रहे हैं लेकिन इस बात पर गौर नहीं करते कि अपने बाग से फूल हम भी तो उजाड़ रहे हैं। घर बड़ा चाहिए आखिर कमा किसलिए रहे हैं, तो सवाल है सोना तो बस एक पलंग पर ही है। तो दूसरे के घर के बाहर पड़ा कूड़ा देखना बंद करिए और अपने घर का कूड़ा देखिए...और अपना आशियां साफ रखिए कुदरत अपने आप सवंर जाएगी...
मदर्स डे बीत गया और हमने अपनी-अपनी माओं का शुक्रिया अदा कर उन्हें प्यार भरे तोहफ़े भी दे दिए..पर कल हमने अपने शब्दों में आपसे कुछ और भी कहा था, नहीं पता कितने लोगों ने हमारी बातों को गौर किया और सबसे बड़ी बात पता नहीं कितने लोगों ने उसपर अमल किया। खैर आकड़ों में तो नहीं कहा जा सकता है, पर हमें उम्मीद जरुर है कि कुछ दिलों ने संकल्प पूरा करने का संकल्प जरुर लिया होगा। हम ऐसे लोगों का शुक्रिया अदा करते हैं, पर वहीं अभी भी ऐसे लोग हैं जो इस बात को सिर्फ एक मामूली बात समझ कर भूल भी गए होंगे। हम ऐसे लोगों से ही अपने शब्दों के जरिए कुछ कहना चाहते हैं। जरुरी नहीं है कि किसी काम को करने के लिए आपके पास पैसा हो...बस एक सही सोच और एक सही दिशा की जरुरत है किसी अच्छे काम को करने के लिए, हमने आपको हमसे मिलवाया क्या करना चाहते हैं ये बताया, लेकिन आपके सहयोग से ये नेक काम पूरा नहीं हो सकता, ये हमारा स्वार्थ नहीं हम, आप और सबकी जरुरत है। असीम गुणों से भरे कुदरत के खजाने को खाली होने से बचाना हम सबका कर्तव्य है, ताकि आगे हमारे घर में खजाना भरा रहे। जिन्होंने ऐसा किया, जो कर रहे हैं या जो करना चाहते हैं उन्होंने बहुत अच्छा किया। पर जो नहीं कर रहे उन्हें करना चाहिए और जो नहीं कर पा रहे उन्हें मदद तो करनी ही चाहिए, जब ऐसा सोच लेंगे तो फिर वो दिन दूर नहीं जब हम बिना किसी प्राकृतिक आपदा के डर के खुशहाल जिंदगी बसर करेंगे। हम इस जिंदगी की तलाश में आगे बढ़ चुके हैं और उम करते हैं आप हमारा साथ जरुर देंगे...